सांया

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कुछ ख्वाब जो ख़ुशी का सबब होते हैं

कुछ ऐसे जो ज़हन पर

डर का सांया बने रहते हैं

डराते हैं पल-पल मुझे

उस अंजानी व्यथा से

जो ना हो भी

आती से प्रतीत होती है

डराती है मुझे के

'कल ना जाने क्या हो?'

जो हुआ सच वो ख्वाब

तो मेरा क्या होगा

क्या ये डर का सांया

मेरी हक़ीक़त में बदलेगा

या जीवन भर बस सांया बन

मेरे ज़हन पर छाया रहेगा?

क्या सच है आने वाले कल का

ये मैं नहीं जानती पर

ये सवाल मुझे हर पल सताता रहेगा

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