कैद परिंदे

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कैद परिंदे दि हसरत,
आखिर कि है?

जंग और अमन,
इक दूजे से हैं जुदा!
झूठे गरूरों ने सदा
मोहब्बत को कुचला।
बेखयालियों में खोए
कितने अपने हैं,
लुटी गलियों में
सिसकते सपने हैं!

कैद परिंदे दि हसरत,
आखिर कि है?

दिल में बसी इक उम्मीद,
आसमानी ख्वाहिश कि है?
क्या जंग द हौसला,
मोहब्बत से बढ़ा है?

कैद परिंदे दि हसरत,
आखिर कि है?

मट्टी में रखे गर कदम,
चलने को हों तैयार
हर दिल में बसी इक मंजिल,
जिद ते लुटाए जीत हर तरफ!

कैद परिंदे दि हसरत,
आखिर कि है?

क्यों मनता नहीं जश्न,
आजादी के नाम?
दरिया पर उड़ के
खुला गगन चूमना,

कैद परिंदे दि हसरत,
क्या इत्ती है?

आखिर इंसानियत में ही
अमन की क्षमता,
जंग का खत्म होना है
प्रेम का
सबसे बढ़ा ईजहार!

कैद परिंदे दि हसरत,
बस यही है!

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