खाली मटका

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"ना पता कौनसे अनसूने स्वर, दिल दे अंदर ताँ निकल के

इन लव्ज़ो ते बरसात कर नव ज़िंदगी दे गये।

जिवें खाली खेत ते बारिश दी बूंद टप-टप गिरकर,

अग्गे वाले दिन खिलखिलाते फूल-घास विच तब्दील हो जाती है।"

"वाह!"

"क्यूं हँसी खुशी, चिड़िया-तितलि आके खेलन,

दिल दी उड़ानो नु खुलके सजावा।

मानो धीमी गति दी धड़कन पहचानी,

एक अनोखी कहानी गुनगुनाई,

जो न कही गयी, न सुनाई गयी... "

"आगे?"

"आगे...?

कुच्च भी नोही!

बस खाली मन!

इक खाली मटका दा मामला

जिसनू टकरा के आवाज़

चौघा वज्जदी है..."

"ते फेर?"

"..."

"चुप क्यूँ हो गए?"

"बहुत गाता- गुनगुनाना मन,

खिलखिलाके गुजंदा वि ए

पर दिल तन खाली!

खाली सा मटका,

देणे लई कुच्च भी नोही उस कोल

ते किसे दिन टूटा ते बिखर जावे,

इस सोच तों डर वि नोही।"

Kooch AlfazWhere stories live. Discover now