(6) The Sagacious & Seraphic speciality of Sui generis, Suprememost Godhead

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"हे केशव ! कुछ तो समझ गया, पर कुछ-कुछ असमंजस में हूँ,
इतना समझ गया की मैं न स्वयं के वश में हूँ |

हे माधव ! मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाँऊ,
रख सिंहासन लाशो पर, मै शासक कैसे बन जाँऊ |

ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ,
जीवन म्रत्यु क्या है माधव?

रण मे जीवन दान बताओ
काम, क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ,
अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ |

इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया,
तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से मे बोल गया -

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सारे सृष्टि को भगवन बेहद गुस्से में लाल दिखे,
देवलोक के देव डरे सबको माधव में काल दिखे |

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अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ मै ही त्रेता का राम हूँ |
कृष्ण मुझे सब कहता है, मै द्वापर का घनशयाम हूँ ||
रुप कभी नारी का धरकर मै ही केश बदलता हूँ |
धर्म बचाने की खातिर, मै अनगिन वेष बदलता हूँ |
विष्णु जी का दशम रुप मै परशुराम मतवाला हूँ ||
नाग कालिया के फन पे मै मर्दन करने वाला हूँ |
बाँकासुर और महिसासुर को मैने जिंदा गाड़ दिया ||
नरसिंह बन कर धर्म की खातिर हिरण्यकश्यप फाड़ दिया |
रथ नही तनिक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढता हूँ |
गाण्डिव हाथ मे तेरे है, पर रणभुमि मे मैं लड़ता हूँ ||

इतना कहकर मौन हुए, खुद ही खुद सकुचाये केशव,
पलक झपकते ही अपने दिव्य रूप में आये केशव |

If Winter comes,🍁🍂Can Spring be far behind?🌱🌿Where stories live. Discover now